चालाक नाई और ब्राह्मण की चोटी – एक मजेदार नैतिक कहानी | Cartoon Animation Script in Hindi

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Naai our brahman ki choti



कहानी का सारांश:

एक गांव में एक चतुर नाई और एक चालाक किंतु अहंकारी ब्राह्मण के बीच झगड़ा हो जाता है, जो पूजा-पाठ और दक्षिणा को लेकर शुरू होता है और चोटी कटने पर खत्म होता है। यह झगड़ा राजा के दरबार तक पहुंचता है जहां न सिर्फ फैसला होता है, बल्कि समाज को एक गहरा संदेश भी मिलता है।


 

सीन 1: गांव का जीवन 


नैरेटर:

"यह कहानी है एक छोटे से गांव की... जहां चोटी वाले पंडितजी का बड़ा नाम था, और नीम के पेड़ के नीचे अपनी दुकान लगाए एक नाई अपनी चालाकी के लिए मशहूर था। दोनों में ज्ञान था, पर एक के पास तिलक और मंत्र थे, और दूसरे के पास तजुर्बा और तीखी जुबान।"

 

दृश्य: सुबह का समय। गांव में हल्की धूप फैली हुई है। मंदिर की घंटियां बज रही हैं। बैलगाड़ियां गुजर रही हैं, महिलाएं पानी भर रही हैं।


कैमरा पैन करता है: मंदिर की ओर, जहां ब्राह्मण पूजा कर रहा है। सिर पर चोटी, गले में रुद्राक्ष और माथे पर चंदन।


ब्राह्मण (मंत्रोच्चार करते हुए): "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे... दक्षिणा देना न भूलें भक्तों, तभी पुण्य मिलेगा।"

गांववाले (हाथ जोड़ते हुए): "धन्यवाद पंडितजी, आपने तो हमारी आत्मा तक को शुद्ध कर दिया।"


नैरेटर:

"पंडितजी का चेहरा शांत दिखता है, पर जेब गरम रखने की आदत उन्हें विरासत में मिली थी। गांव में उनका बड़ा रौब था, लेकिन हर कोई उनके आगे झुकता हो — ये जरूरी नहीं।"

 

दृश्य: अब कैमरा मुड़ता है — गांव की नीम के पेड़ के नीचे नाई की दुकान पर। चारपाई, शीशा, उस्तरे और कुछ जरूरी सामान।

नाई (मुस्कराते हुए, बाल काटते हुए): "लाला जी, बाल तो ऐसे उलझे हैं जैसे बीवी की नाराज़गी... सुलझते ही नहीं!"

ग्राहक (हँसते हुए): "तू तो दिन बना देता है रामू! तुम्हारी बातें सुनकर बड़ा मजा आता है ।"



नैरेटर:

"रामू नाई सीधा-सादा नहीं था, उसकी बातें लोगों को हँसाती थीं, पर ज़ुबान से सच्चाई ऐसे निकलती थी जैसे उस्तरे की धार से बाल। वह किसी के भी दिखावे को बर्दाश्त नहीं करता था।"

 


नाई (धीमे स्वर में एक ग्राहक से): "पंडितजी पूजा में तो स्वर्ग दिला देते हैं, पर दक्षिणा में अगर एक सिक्का कम दो तो नर्क का रास्ता दिखा देते हैं।"



नैरेटर:

"अब आप समझ गए होंगे, ये दोनों अलग-अलग धाराएं हैं — एक धर्म का ठेकेदार, दूसरा समाज का आईना। लेकिन गांव छोटा था... और टकराव होना तय था।"


 

साउंड इफेक्ट: मंदिर की घंटियों के साथ हल्का शहनाई का संगीत, वातावरण में देहाती मिठास।




सीन 2: ब्राह्मण और नाई की पहली हल्की तकरार



नैरेटर :

"कहते हैं, जब दो चालाक आदमी एक ही गांव में हों, तो या तो उनकी जुगलबंदी बनती है तकरार होता है। और इस गांव में ये तकरार हल्के ठहाकों से शुरू हुई थी..."

 


दृश्य: गांव का बाजार। हल्की चहल-पहल। बैलगाड़ी के पहिये की चरमराहट, दुकानदरों की पुकार और नीम के नीचे नाई की दुकान। वहां हँसी-मजाक और हजामत चल रही है।


वहीं दूर से ब्राह्मणजी मंदिर की ओर जाते हुए दिखते हैं। चोटी हवा में लहरा रही है, आंखों में गुरूर और चेहरे पर मुस्कान।

नाई (ऊंची आवाज़ में): "अरे अरे! पंडितजी! चरण-स्पर्श! दुकान की शोभा बढ़ गई आपकी छाया से!"

ब्राह्मण (रुकते हुए, गरिमापूर्ण अंदाज़ में): "रामू, मैं मंदिर जा रहा हूँ। तुम्हारी दुकान की छाया से मुझे ज़्यादा पुण्य की तलाश है।"

नाई (हँसते हुए): "पंडितजी, आपकी चोटी मंदिर की घंटियों से भी ऊँची लहरा रही है... कहीं ये हवा में उड़ न जाए! संभाल के चलिएगा।"

ब्राह्मण (गंभीर स्वर में): "व्यंग्य छोड़ो रामू, चोटी ब्राह्मण की पहचान है। और मज़ाक में धर्म का अपमान मत करो।"

नाई (हल्की मुस्कान के साथ): "पंडितजी, मज़ाक तो नहीं... लेकिन जब पूजा के बाद दक्षिणा के नाम पर लोगों की जेबें ढीली की जाती हैं, तो धर्म भी शर्माता होगा!"

ब्राह्मण (कड़वाहट के साथ): "तुम्हें धर्म की क्या समझ? उस्तरे की धार से लोगों के सिर सजाओ, हमारे काम में मत टांग अड़ाओ।"

नाई (संयम से): "सिर मैं सजाता हूँ, लेकिन लोगों के दिल से भी जुड़ा रहता हूँ। आपके तो सिर्फ पैसे से रिश्ता है, पंडितजी।"



नैरेटर:

"बस... यहीं से दोनों की बातों में कड़वाहट में बदल चुकी थी । एक जो खुद को आकाश से भी ऊंचा समझता था, और दूसरा जो धरती पर लोगों की नब्ज पहचानता था।"


 

ब्राह्मण गुस्से में आगे बढ़ जाता है। नाई कुछ देर तक मुस्कराता है, फिर शांत हो जाता है।

साउंड इफेक्ट: हल्का तनावपूर्ण संगीत, बीच में शहनाई की धीमी धुन।

फेड आउट टेक्स्ट: "जहां मज़ाक चोट बन जाए, वहां अगली मुलाकात हमेशा तूफान लाती है..."




सीन 3: नाई के घर पूजा और पैसों को लेकर असली टकराव



नैरेटर:

"कभी-कभी मज़ाक मज़ाक में ऐसी चिंगारी लगती है, जो पूरे गांव में धुआं फैला देती है। और इस बार चिंगारी लगी नाई के आँगन में, जब पंडितजी खुद उसके बुलावे पर पूजा करने पहुँचे..."


 

दृश्य: दोपहर का समय। नाई का छोटा-सा घर। आँगन में आम का पेड़, पास में पूजा की तैयारी — चौकी, धूप, नारियल और फूलों की थाली।

नाई की पत्नी : "जल्दी करो रामू, पंडितजी आ गए हैं। पूजा शुरू करनी है।"

ब्राह्मण (घर में प्रवेश करते हुए, तिलक लगाए, पोथी लिए): "रामू, सब कुछ ठीक से रखा है न? पूजा में गड़बड़ी हुई तो दोष तुम्हारे सिर आएगा।"

नाई (हँसते हुए): "चिंता मत कीजिए पंडितजी, इस बार न दक्षिणा में कमी होगी, न स्वागत में।"




नैरेटर:

"रामू नाई चालाक था। जानता था कि धर्म के नाम पर ब्राह्मण अपनी कीमत बढ़ाते हैं। लेकिन आज उसने तय कर रखा था — देखेगा कितनी पूजा में कितना भाव निकलता है।"



 

दृश्य: पूजा आरंभ होती है। पंडित मंत्र पढ़ता है, पत्नी आरती करती है, नाई हाथ जोड़कर खड़ा है।

ब्राह्मण (पूजा के बाद): "पूजा संपन्न हुई। अब दक्षिणा दो — 1051 रुपए, 2 मीटर धोती, और एक नारियल अलग से।"

नाई (आश्चर्य से): "पंडितजी! पूजा मेरे घर पर हुई, और आप पूरी बारात का खर्च मांग रहे हैं?"

ब्राह्मण (तेज आवाज़ में): "धर्म का काम है ये! और धर्म सस्ता नहीं होता, रामू।"

नाई (कटाक्ष भरे स्वर में): "तो फिर अगली बार पंडित की जगह व्यापारी बुला लूं, सीधा रेट तय करके।"

ब्राह्मण (गुस्से में): "जुबान संभाल रामू! ये चोटी मैने शौक से नहीं रखे हैं ? तू क्या जाने ब्राह्मण का मान क्या होता है!"

नाई (ताव में आकर): "अगर चोटी से ही ज्ञान होता, तो गधा सबसे बड़ा विद्वान होता!" (फिर अचानक नाई ब्राह्मण की चोटी की ओर बढ़ता है)

दृश्य: नाई गुस्से में ब्राह्मण की चोटी पकड़ता है और झटके में कैंची से काट देता है। ब्राह्मण चौंक जाता है — उसकी आंखें फटी रह जाती हैं।

ब्राह्मण (चिल्लाते हुए): "रामू!! ये तूने क्या कर डाला! मेरी चोटी... मेरा सम्मान! तूने सब बरबाद कर दिया।"



नैरेटर:

"और इसी एक कट से कट गई गांव की शांति। बात सिर्फ बालों की नहीं थी... यह अहंकार, प्रतिष्ठा और पाखंड पर सीधा प्रहार था। अब यह बात सिर्फ घर की नहीं, पूरे गांव और राजा की अदालत तक जाएगी।"


 

साउंड इफेक्ट: तेज ढोल की आवाज़, साथ में एक झटका देने वाली संगीत की धुन।

फेड आउट टेक्स्ट: "जब अहंकार और तंज टकराते हैं, तब चोटी नहीं, कहानी कटती है..."



सीन 4: गांव में हंगामा और राजा तक खबर पहुंचना



नैरेटर :

"गांव में न कभी चोटी इतनी चर्चा में आई थी, न किसी ब्राह्मण का इतना अपमान हुआ था । चोटी नहीं कटी थी, ब्राह्मणत्व की नाक कटी थी — और अब ये बात पूरे गांव में फैलने लगी थी।"



 

दृश्य: गांव की चौपाल। लोग इकट्ठा हो रहे हैं, कुछ खेतों से, कुछ दुकानें छोड़कर। हर चेहरे पर उत्सुकता, कानों में फुसफुसाहट।

गांववाले 1: "अरे सुना, रामू नाई ने पंडितजी की चोटी काट दी!"

गांववाले 2: "क्या? चोटी? अरे वो तो पूरा अपमान है! वो भी सबके सामने पूजा के बाद!"

गांववाले 3 (हँसते हुए): "रामू भी न! मज़ाक करते-करते कैंची चला दी सीधी आत्मा पर!"

दृश्य: ब्राह्मण घर लौटते हैं — आंखें लाल, माथा बिना चोटी के सूना, पत्नी घबरा जाती है।

ब्राह्मण की पत्नी: "हे भगवान! ये क्या करवा लाए?  चोटी कैसे कट गई? लोग क्या कहेंगे?"

ब्राह्मण (गुस्से में): " रामू नाई ने मेरी चोटी काट दी। ये अपमान नहीं सहूंगा! मैं सीधा दरबार जाऊंगा राजा के पास! न्याय मांगूंगा!"



नैरेटर:

"अब मामला सिर्फ पूजा या दक्षिणा का नहीं था... अब बात धर्म की बेइज्जती की थी — और जब मामला ब्राह्मण और चालाक नाई के बीच हो, तो गांव की पंचायत नहीं, राजा का दरबार फैसला करता है।"



 

दृश्य: ब्राह्मण गांव के दो गवाहों के साथ चल पड़ते हैं  हाथ में लाठी लिए , चेहरा अपमान से तना हुआ लाल।

गवाह 1: "पंडितजी, आप चुप मत रहिए... राजा खुद कहता है — न्याय सबके लिए समान है।"

गवाह 2: "और रामू जैसे लोग अगर बिना सज़ा बच गए तो गांव में सबकी हिम्मत बढ़ जाएगी धर्म संकट का सवाल है।"

साउंड इफेक्ट: धीमी लेकिन गंभीर तबले की थाप, जो तनाव को बढ़ाती है।



नैरेटर :

"राजा का दरबार में अब दोनों का फैसला होगा। एक पक्ष धर्म का होगा, दूसरा तर्क का। और फैसला जो होगा — वो इतिहास में मिसाल बन जाएगा..."


 

फेड आउट टेक्स्ट: "जब इंसाफ चोटी और उस्तरे के बीच फंसे... तो राजा की गद्दी ही तराजू बनती है..."



सीन 5: राजा का दरबार — ब्राह्मण की शिकायत और नाई की सफाई




नैरेटर:

"जब बात गांव से निकलकर दरबार तक पहुँचे, तो मामला छोटा नहीं रहता। चोटी अब धर्म की नहीं, न्याय की परीक्षा बन चुकी थी। और राजा का दरबार — जहां पत्तों की सरसराहट भी निर्णय पर असर डालती है — अब दोनों को बुला रहा था..."



 

दृश्य: भव्य दरबार। राजा सिंहासन पर बैठा है। मंत्रिगण, सिपाही और दरबारी कतार में खड़े हैं। ढोल की धीमी गूंज के बीच ब्राह्मण क्रोधित चेहरा लिए प्रवेश करते हैं। पीछे नाई भी आता है — हल्की मुस्कान, आत्मविश्वास और आंखों में शरारत।

राजा (गंभीर स्वर में): "पंडित जी, आपकी शिकायत क्या है?"

ब्राह्मण (गंभीरता से झुकते हुए): "महाराज! मेरे धर्म का अपमान हुआ है! मेरी चोटी काट दी गई — वो भी पूजा के बाद, मुझे अपमान करने के लिए!"

राजा: "तुम्हारी चोटी काट दी गई। चोटी का अपमान क्यों हुआ? किसने किया?"

ब्राह्मण (गुस्से में उंगली उठाकर): "इस रामू नाई ने! पहले पूजा के लिए बुलाया, फिर दक्षिणा के नाम पर मज़ाक और फिर मेरी चोटी पर कैंची चला दी!"

दरबार में हलचल। लोग आपस में कानाफूसी करते हैं।

राजा (नाई की ओर देखता है): "रामू! क्या ये सत्य है?"

नाई (शांति और व्यंग्य के साथ): "महाराज, सत्य तो ये है कि पूजा के नाम पर जबरन दक्षिणा मांगी गई। जब मैंने विरोध किया, तो मेरा मज़ाक उड़ाया गया — और चोटी की ऊंचाई से मुझे नीचा दिखाया गया। मैंने चोटी नहीं काटी महाराज... मैंने घमंड काटा था।"

मंत्री (चौंकते हुए): "घमंड?"

नाई: "जी मंत्रीजी, अगर ब्राह्मणता चोटी में बसी है, तो फिर मेरे जैसे गरीबों को इंसान मानने से पहले लोग सिर क्यों देखते हैं?"

ब्राह्मण (बोलते हैं): "ये सब धर्म का अपमान है!"

राजा (सोच में डूबते हुए): "धर्म यदि चोटी में हो, तो फिर बुद्धि कहां है?"




नैरेटर:

"दरबार में पहली बार सवाल धर्म पर नहीं, उसके व्यवहार पर उठे थे। और राजा अब सिर्फ निर्णय नहीं, उदाहरण देने की तैयारी में था..."


 

राजा: "रामू नाई! तुम्हारा व्यवहार निंदनीय है... लेकिन तर्क में वजन है। और पंडितजी... पूजा व्यवसाय नहीं, विश्वास होना चाहिए। इसलिए — नाई को चेतावनी दी जाती है कि वह आगे से किसी का अपमान न करे, और ब्राह्मण को यह सीख दी जाती है कि धर्म का व्यवहार विनम्र होना चाहिए, मूल्य नहीं।"

दरबार में मौन। सभी गहराई से सोच में पड़ जाते हैं।



नैरेटर:

"फैसले में किसी की जीत नहीं हुई... लेकिन अहंकार जरूर हार गया। धर्म और तर्क दोनों को तटस्थता का आईना दिखा दिया राजा ने..."


 

फेड आउट टेक्स्ट: "चोटी अगर ज्ञान का प्रतीक हो, तो उसे ऊँचाई का अहंकार नहीं, विनम्रता का बोझ उठाना चाहिए..."




सीन 7: निष्कर्ष और नैतिक संदेश

दृश्य: सूर्यास्त का समय। गांव की गलियों में शांति है, बैलों की धीमी घंटियां सुनाई देती हैं। बच्चे खेलते हैं, बुजुर्ग चौपाल पर बैठे हैं, और महिलाएं आंगन में बर्तन समेट रही हैं।



नैरेटर:

"कहानी एक नाई और एक ब्राह्मण की थी... लेकिन असल में यह कहानी थी — अहंकार और तर्क की। यह कहानी थी — धर्म के दिखावे और उसकी समझ की। और यह कहानी थी — एक ऐसे समाज की, जहां ऊँच-नीच का फर्क बाहर से नहीं, सोच से मिटता है।"



 

दृश्य कट: कैमरा धीरे-धीरे गांव से ऊपर उठता है — खेत, पेड़, पगडंडी और अंत में डूबता सूरज।



नैरेटर

“अगर सम्मान सिर के बालों से तय होता, तो सोच की गहराई खो जाती। असली पूजा तब होती है, जब इंसान दूसरे इंसान को इंसान माने — बिना ऊँच-नीच के, बिना घमंड के। और यही है इस कहानी का सार — चोटी काटना नहीं, सोच बदलना ज़रूरी है।”


 

फेड आउट टेक्स्ट (स्क्रीन पर उभरता है): “ज्ञान का घमंड, धर्म की विनम्रता को नहीं खा सकता।”
— समाप्त —

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