कहानी का सार:
इस प्रेरणादायक हिंदी कार्टून कहानी में एक ईमानदार धोबी और लालची साहूकार के बीच कपड़ों और उधारी को लेकर विवाद हो जाता है। जब मामला लड़ाई तक पहुंचता है, तो दोनों राजा के दरबार में न्याय की मांग करते हैं। राजा गवाही और सच्चाई के आधार पर न्याय करता है, जिससे समाज को एक बड़ा सबक मिलता है।
सीन 1: गांव की सुबह और धोबी का घर
स्थान: छोटा-सा गांव, मिट्टी के घर, खेतों के किनारे बसा हुआ। पक्षियों की चहचहाहट और सुबह की हल्की धूप। धोबी का घर एक पुराने कुएं के पास बना हुआ है।
बैकग्राउंड म्यूज़िक: धीमी बांसुरी की धुन, पक्षियों की आवाजें।
Narrator:
गांव के लोग खेतों की ओर जाते दिखाई देते हैं। महिलाएं पानी भरने के लिए कुएं पर हैं। धोबी कुएं के पास कपड़े धो रहा है।
धोबी: (मुस्कुराते हुए, कपड़ों को घिसते हुए गाता है)
"घिस-घिस कर चमकाएं कपड़े, ईमानदारी से कमाएं रोटियां।"
(हंसी के साथ) "ये कुर्ता साहूकार का है... देखो तो जैसा आदमी है वैसा ही इसका कपड़ा भी गंदा।"
धोबी की पत्नी: (आवाज लगाते हुए)
"सुनिए जी! साहूकार के कपड़े अभी तक दिए नहीं क्या? पांच दिन से पड़े हैं। आज जरूर पहुंचा दीजिएगा। नहीं तो वह आप को बहुत गाली देगा । आप तो उसका स्वभाव जानते ही हैं। वो बहुत तुनकमिजाज है।"
धोबी: (मुस्कुराकर सिर हिलाता है)
"हां-हां भगवान, पता है मुझे। पर जो काम सेवा भाव से करूं, उसके लिए ताने मिलें तो बुरा लगता है।"
धोबी की पत्नी: (बर्तन मांजते हुए, प्यार से)
"बुरा मत मानिए, आप जैसे सीधे लोग ही इस दुनिया को सीधा रखते हैं। अब जल्दी नाश्ता कर लीजिए, फिर कपड़े दे आइएगा।"
दृश्य समाप्ति: धोबी बाल्टी में कपड़े डालकर तैयार करता है। बैकग्राउंड में सूरज थोड़ी ऊंचाई पर आता है। पक्षियों की चहचहाहट तेज होती है और सीन धीमे से फेड आउट होता है।
सीन 2: साहूकार का घर और लालच
स्थान: गांव के बीच में बना एक बड़ा पक्का मकान — ऊंची दीवारें, लकड़ी का फाटक, भीतर एक बड़ा आंगन और कीमती सामानों से सजा हुआ कमरा।
बैकग्राउंड म्यूज़िक: धीमा तबला और सितार का आवाज, जिससे लालच और घमंड का माहौल बनता है। कुछ मध्यम सुरों में ड्रम की थाप।
Narrator:
साहूकार एक बड़े हॉल में बैठा हुआ है, उसके सामने हिसाब-किताब का खाता खुला हुआ हैं। एक नौकर पंखा झल रहा है। उसकी पत्नी पास ही बैठी गहनों का डिब्बा खोल कर उसमें गहने देख रही है।
साहूकार (झुंझलाते हुए):
"ऊंह! ये धोबी तो हद से ज्यादा देर लगा रहा है। इतने दिन हो गए है, फिर भी मेरे कपड़े आज तक नहीं लौटाए।"
साहूकार की पत्नी: (हाथ में कंगन देखकर मुस्कुराते हुए)
"आपने ही तो कहा था — 'अभी देने की कोई जल्दी नहीं है'। अब धोबी को दोष क्यों दे रहे हो?"
साहूकार: (गुस्से में खाता बंद करता है)
"क्यों न दूं? काम तो देर से करता है और पैसे देखो कैसे मांगता है ? ऐसे लोगों को सबक सिखाना पड़ेगा। अबकी बार उसको पैसे देना ही नहीं है ।
साहूकार की पत्नी: (थोड़ा व्यंग्य से)
"सेवा तो उसने की है, कपड़े धोकर। अब बात पैसों पर अटक गई है?"
साहूकार: (कुटिल मुस्कान के साथ)
"अब उसका हिसाब करेंगे अपने तरीके से। कल तक अगर उसने कपड़े नहीं लौटाए, तो पूरे गांव में उसे बदनाम कर दूंगा।"
दृश्य समाप्ति: साहूकार कुर्सी पर पीठ टिकाकर आंखें बंद करता है, और नौकर से कहता है –
साहूकार: "जरा देखना, धोबी कब आता है। और हां, जैसे ही आए मुझे खबर कर देना।"
कैमरा धीरे-धीरे साहूकार के गहनों और सोने के सिक्कों पर ज़ूम करता है, फिर सीन धीरे-धीरे फेड आउट होता है।
सीन 3: कपड़े लौटाने की कोशिश
स्थान: गांव की मुख्य गली, साहूकार का घर
Narrator:
धोबी सिर पर टोकरी में कपड़े लेकर साहूकार के घर की ओर चल रहा है। धोबी थका हुआ है लेकिन आत्मसम्मान से भरा हुआ।
धोबी: (धीरे-धीरे चलते हुए)
"इन कपड़ों को कितनी मेहनत से धोया है... और साहूकार क्या समझता है, हम मुफ्त में करते हैं? पता नहीं उसमें मन में क्या चलता है । पैसा का नाम लेते ही नाराज हो जाता है।"
धोबी की पत्नी (पीछे से आवाज लगाती है):
"ज्यादा बहस मत करिएगा। कपड़े दे दीजिए और लौट आइए। खुद को झगड़े में मत डालिए।"
धोबी: (सिर हिलाकर)
"हां, हां भागवान... जितनी तेरी बात सुनूंगा ना, उतनी मेरी उम्र बढ़ जायेगी।"
दृश्य बदलाव: धोबी साहूकार के घर पहुंचता है। गेट पर नौकर खड़ा है।
धोबी: (नौकर से)
"जरा साहूकार जी से कहो कि उनके कपड़े लौटाने आए हैं, साफ-सुथरे और इस्तरी किए हुए।"
नौकर: " आप ठहरिए, मैं अंदर जाकर बताता हूं।"
Narrator:
साहूकार आंगन में खटिया पर बैठा है। नौकर उसकी ओर झुककर बात करता है। साहूकार गुस्से में बाहर निकलता है।
साहूकार: (गुस्से में बाहर आता है)
"तो आ ही गया आखिरकार! कितने दिन हो गए, आज याद आई कपड़े लौटाने की?"
धोबी: (थोड़ा विनम्र लेकिन सीधा)
"साहूकार जी, कपड़े पूरी ईमानदारी से धोए हैं। किसी और के कपड़े होते तो दो दिन में लौटा देता, पर आपके कपड़े का ख्याल रखना पड़ता है ना इसलिए देर हो जाती है।"
साहूकार: "और मेरी उधारी का क्या जो तुमने मुझसे लिया था ? सौ रुपये बाकी हैं, या वो भी भूल गया तू?"
धोबी (आश्चर्य और विरोध में): "उधारी? आपने तो कहा था कि ये सेवा समाजिक काम समझकर कर रख लेना। पैसे वापस करने का तो जिक्र ही नहीं हुआ था!"
साहूकार (कुटिल हंसी के साथ): "तेरे जैसे लोग हमेशा मुफ्त की आदत डाल लेते हैं। सारा गांव जानता है कि तू उधारी लेकर खा गया है।"
धोबी (गुस्से में): "मैं मेहनत से कमाता हूं! आज तक ना तो मैंने चोरी की है और ना ही किसी के साथ धोखाधड़ी। आप मुझपर गलत इल्जाम लगा रहे हैं।
दृश्य समाप्ति: दोनों के बीच बहस तेज हो जाती है। कुछ गांव वाले जमा हो जाते हैं। धोबी कपड़ों की टोकरी ज़मीन पर रखता है ।
भीड़ में फुसफुसाहट: "लगता है अब ये मामला राजा तक जाएगा..."
सीन 4: झगड़े का बढ़ना और गांव की भीड़
स्थान: साहूकार का घर के बाहर, गांव की मुख्य गली
Narrator:
धोबी और साहूकार के बीच तेज बहस हो रही है। साहूकार की पत्नी भी दरवाज़े पर आकर खड़ी हो जाती है। धोबी की आवाज ऊंची होने लगती है।
धोबी: (गुस्से में)
"मैं मेहनती हूं, पर अपमान सहन नहीं करूंगा! आपने मुझे मुफ्तखोर कहा, अब मैं चुप नहीं रहूंगा!"
साहूकार: (भीड़ की ओर मुड़ते हुए, नाटक करते हुए)
"देखिए गांववालों! ये धोबी मेरा उधार खाकर झूठ बोल रहा है। मेरा सौ रुपये खा गया और अब मुझसे ही बहस कर रहा है!"
धोबी: "मैंने कोई उधार नहीं लिया! आपकी पत्नी ने खुद कहा था — ये सेवा के लिए है, दान है।"
साहूकार की पत्नी: (झूठ बोलते हुए)
"मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा था ! ये सब धोबी की चाल है!"
गांववाले: (फुसफुसाते हुए)
"अरे! मामला बड़ा लग रहा है..."
"कौन सच बोल रहा है? और कौन झूठ।"
"राजा के दरबार में ही इसका फैसला हो सकता है।"
धोबी की पत्नी: (आते हुए, बच्चे को पकड़े हुए)
"चलिए जी! अब गांव में तमाशा मत बनाइए। सीधे महाराज के दरबार में चलिए, वहीं आपको इंसाफ मिलेगा।"
साहूकार (ऊंची आवाज में भीड़ को भड़काते हुए):
"अगर आज ये धोबी बच गया, तो कल इसी तरह सबका उधार खाकर मुकर जाएंगे!"
धोबी: "और अगर आज मैं झूठा साबित हुआ, तो गरीबों की इज्जत यूं ही कुचली जाएगी! उस पर झूठा आरोप लगाकर उसे सताया जाएगा।"
भीड़: (जोर-जोर से बोलती है)
"राजा के दरबार चलो! राजा के दरबार चलो! वहीं पर दूध का दूध और पानी का पानी होगा ।"
दृश्य समाप्ति: दोनों पक्ष राजा के दरबार की ओर चल पड़ते हैं। गांव के लोग उनके पीछे-पीछे चलने लगते हैं। कैमरा ऊपर जाता है और पूरे गांव का नज़ारा दिखता है ।
सीन 5: राजा का दरबार और दोनों पक्षों की शिकायतें
स्थान: राजमहल का दरबार — भव्य सिंहासन, दोनों ओर सैनिक, मंत्री, और जनता का एक हिस्सा दरबार में उपस्थित है।
बैकग्राउंड म्यूज़िक: धीमी शहनाई की धुन, और जब राजा प्रवेश करता है तब नगाड़े और तुर्कियों की आवाज से उसका स्वागत होता है।
Narrator:
दरबार में सन्नाटा है। राजा सोने के सिंहासन पर बैठते हैं। सैनिकों के बीच साहूकार और धोबी अपने-अपने परिवार के साथ खड़े हैं। मंत्री और सिपाही ध्यानपूर्वक खड़े हैं।
राजा: (गंभीर स्वर में)
"कौन है जो न्याय की गुहार लेकर आया है? कहिए, क्या मामला है?"
साहूकार: (सिर झुकाकर, पर चालाकी से बोले)
"महाराज, यह धोबी मेरे कपड़े बहुत दिन तक रखे रहा और जब लौटाने आया तो मैंने उससे पिछला उधार मांगा जो उसने मुझसे लिए थे । मैंने कई बार पैसे मांगे, लेकिन यह टालता रहा। अब गांव में मेरी इज्जत को ठेस पहुंची है।"
राजा: (ध्यान से सुनते हुए)
"और तुम्हारा क्या कहना है, धोबी?"
धोबी: (आत्मविश्वास से)
"महाराज, मैंने साहूकार जी के कपड़े पूरे सम्मान और मेहनत से धोए। जब मैंने सेवा की, तब इन्होंने कहा कि ये सेवा समझकर रख लेना । पैसे उधारी की बात तो नहीं हुई थी। अब ये मुझ पर झूठा आरोप लगाकर मेरी ईमानदारी को बदनाम कर रहे हैं।"
राजा: "क्या कोई गवाह है?"
धोबी की पत्नी: "महाराज, मैंने खुद सुना था साहूकार की पत्नी को यह कहते हुए कि — 'इसे सेवा भाव समझकर रख लेना।'"
राजा: (साहूकार की पत्नी की ओर)
"क्या यह सच है?"
साहूकार की पत्नी: (थोड़ा झिझकती है लेकिन झूठ बोलती है)
"नहीं महाराज, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। ये लोग मुझे फंसा रहे हैं।"
राजा: (मंत्री की ओर मुड़ते हैं)
"मंत्री जी, इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। जब तक सच सामने नहीं आता है, कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।"
मंत्री: "जी महाराज। मैं दोनों पक्षों से अलग-अलग बात करूँगा, गांववालों से भी पूछताछ की जाएगी।"
राजा: (भीड़ की ओर)
"जो भी इस सच्चाई से वाक़िफ़ है, वो डरें नहीं यहां सब सच बता सकते है। न्याय का दरबार हमेशा सबके लिए खुला है।"
दृश्य समाप्ति: दरबार में सन्नाटा है। धोबी और साहूकार चुपचाप खड़े हैं। कैमरा राजा के चेहरे पर जाता है, जो बहुत गंभीर दिखाई दे रहे हैं। नाटकीय संगीत के साथ सीन धीरे-धीरे फेड आउट होता है।
सीन 6: गांववालों से पूछताछ और सच्चाई सामने आना
स्थान: राजमहल का आंतरिक कक्ष (विशेष बैठक कक्ष) जहां सबसे पूछताछ हो रही है।
Narrator:
मंत्री एक ऊंचे आसन पर बैठा है। दोनों पक्ष दरबार से बाहर हैं। अब गवाहों को अंदर बुलाया जा रहा है। दो सैनिक द्वार पर खड़े हैं। अंदर सिर्फ मंत्री, कुछ कागज़ात, और न्याय हेतु नियुक्त एक दरबारी लेखक बैठा है।
मंत्री: (गंभीर स्वर में)
"पहले गवाह को भीतर बुलाया जाए।"
गांववाले गवाह 1 (बुज़ुर्ग काका):
"मंत्री जी, मैंने उस दिन धोबी को कपड़े ले जाते और लौटाते देखा था। वो अक्सर कहता था कि साहूकार पैसे नहीं देता, खाली सेवा करवाता है।"
मंत्री: "क्या तुमने कभी साहूकार की पत्नी को कुछ कहते सुना?"
गवाह 1: "हां, एक बार उन्होंने कहा था — 'हम साहू हैं, गरीबों का सेवा करना पुण्य होता है।'"
मंत्री: "बहुत अच्छा, बैठ जाइए। अगला गवाह बुलाया जाए।"
गवाह 2 (एक महिला, साहूकार की पड़ोसन):
"मंत्री जी, मैं साफ-साफ कहती हूं — धोबी की बीवी झूठ नहीं बोल रही है। मैंने खुद सुना था कि साहूकार की पत्नी ने हंसते हुए कहा — ‘इस सेवा का कोई हिसाब नहीं होता है।’"
मंत्री: "इसका क्या प्रमाण है?"
गवाह 2: "मैं उसके आंगन में ही खड़ी थी। और ये कोई नई बात नहीं, अक्सर वो ऐसा कहती थी गरीबों को दिखाने के लिए कि वो दान करती हैं।"
मंत्री: (लेखक की ओर)
"लिखा जाए — दो स्वतंत्र गवाहों की गवाही मिल चुकी है, जो साहूकार की पत्नी के दावे से विपरीत है।"
दृश्य बदलाव: बाहर साहूकार और उसकी पत्नी बेचैनी से टहल रहे हैं, जबकि धोबी और उसकी पत्नी शांत मुद्रा में बैठे हैं।
मंत्री बाहर आता है:
"राजा के दरबार में अब निर्णय सुनाया जाएगा। सच्चाई सामने आ चुकी है।"
दृश्य समाप्ति: कैमरा मंत्री के चेहरे पर जाता है — उसके चेहरे पर गंभीरता और सच्चाई की चमक साफ झलकती है। धीमा संगीत बजता है और सीन फेड हो जाता है।
सीन 7: राजा द्वारा अंतिम फैसला और सीख
स्थान: राजदरबार (फिर से वही भव्य सिंहासन)
बैकग्राउंड म्यूज़िक: धीमी शहनाई, बीच-बीच में ढोलक की थाप जैसे कोई निर्णय आने वाला हो
सभी गांववाले दरबार में जमा हैं। धोबी और उसकी पत्नी एक ओर, साहूकार और उसकी पत्नी दूसरी ओर खड़े हैं। मंत्री राजा को सबूतों और गवाहों की रिपोर्ट सौंपते हैं।
राजा: (सारी रिपोर्ट देखकर गहरी सांस लेते हैं)
"हमारे राज्य में न्याय सर्वोपरि है। और न्याय सिर्फ धन या पद देखकर नहीं किया जाता, बल्कि सच्चाई के आधार पर होता है।"
राजा: (गांववालों की ओर)
"साहूकार और उसकी पत्नी ने धोबी से सेवा तो ली है, फिर जब धोबी ने कपड़े लौटाए, तो उस पर झूठा उधार थोपना, और गवाही के बावजूद अपनी बात पर अड़े रहना — यह अनैतिक है।"
साहूकार: (झुककर)
"महाराज... मुझसे गलती हो गई। मैं क्षमा चाहता हूं। मै लालच में आ गया था । ताकि फिर से से उससे मुफ़्त में कम करवा सकूं।"
राजा: (गंभीर होकर)
"गलती से बड़ी बात है — स्वार्थ और अभिमान। परंतु चूंकि तुमने सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगी है, और पहली बार ऐसा हुआ है, इस बार तुम्हें सज़ा नहीं दी जाएगी। लेकिन चेतावनी दी जाती है — अगली बार ऐसा गलती दोबारा हुआ तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"
राजा: (धोबी की ओर)
"धोबी, तुमने धैर्य और सच्चाई से काम लिया। तुम्हारी ईमानदारी इस दरबार की शान बनी। तुम्हें सम्मानित किया जाता है — एक स्वच्छ वस्त्र भंडार की व्यवस्था करवाई जाएगी, जो तुम्हारे नाम से गांव में चलेगा।"
गांववाले: (ताली बजाते हैं, “सत्यमेव जयते!” चिल्लाते हैं)
धोबी और उसकी पत्नी: (आँखों में आँसू लेकर झुकते हैं)
"धन्यवाद महाराज... आपने हमारे आत्मसम्मान को बचा लिया। वरना हम गरीब लोग ओर दबते चले जाते।"
राजा: (सभा की ओर)
"याद रखो — समाज तब तक स्वस्थ नहीं बन सकता जब तक हम गरीब की आवाज नहीं सुनते और अमीर की चालाकी को पहचानना नहीं सीखते। न्याय सबका अधिकार है।"
दृश्य समाप्ति: राजा उठते हैं, दरबार से बाहर जाते हैं। कैमरा ऊँचाई से पूरे दरबार को दिखाता है। धोबी के चेहरे पर संतोष और शांति है। अंतिम दृश्य में गांव का नाम और राजा की न्यायप्रियता को दर्शाने वाला टेक्स्ट उभरता है।
सीन 8: गांव में बदलाव और सुखद अंत
स्थान: गांव का मुख्य चौक, कुछ दिन बाद
बैकग्राउंड म्यूज़िक: हल्की बांसुरी और पखावज की मधुर धुन
Narrator:
गांव पहले से ज्यादा शांत और प्रसन्न नजर आता है। महिलाएं पानी भर रही हैं। गांव के एक कोने में नया ‘धोबी वस्त्र केंद्र’ खुल चुका है, जिसका बोर्ड लिखा है: “ईमानदार सेवा केंद्र – धोबी रामू द्वारा संचालित”
धोबी: (कपड़े धोते हुए)
"अब कपड़े की सेवा के साथ-साथ विश्वास भी मिलेगा। राजा जी ने जो भरोसा दिया है, उसे कभी टूटने नहीं दूंगा।"
धोबी की पत्नी: (हंसते हुए)
"देखा, मेहनत और सच्चाई का फल कितना मीठा होता है। अब गांव वाले भी हमसे सम्मान से बात करते हैं।"
दृश्य परिवर्तन: साहूकार अपने घर के बाहर बैठे हैं, और गांव के कुछ गरीबों को पानी पिला रहे हैं।
साहूकार: (भीतर से पछताते हुए)
"अब समझ आया — इज्जत पैसे से नहीं, व्यवहार से कमाई जाती है।"
गांववाले (एक बुज़ुर्ग):
"राजा ने जो न्याय किया, वो पूरे गांव के लिए एक सीख बन गया है। अब कोई किसी गरीब का हक़ नहीं मारेगा।"
फाइनल दृश्य: राजा के महल की ओर कैमरा जाता है, ऊपर आसमान में उगता सूरज दिखता है और टेक्स्ट उभरता है:
"जहाँ न्याय होता है, वहीं सच्ची प्रजा पनपती है। सच्चाई कभी हार नहीं मानती।"
दृश्य समाप्ति: मधुर संगीत के साथ कहानी का सुखद अंत। स्क्रीन पर “समाप्त” लिखा आता है।
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