कर्जे का बोझ Karje ka Bojh। एक गांव की दिल छू लेने वाली कहानी |

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कर्जे का बोझ

alt="कर्ज़ में डूबे दो ग्रामीणों के बीच बहस करते हुए - गांव की सच्ची हिंदी कहानी का चित्र"


सारांश: 
"कर्जे का बोझ" एक छोटे से भारतीय गांव की मार्मिक कहानी है, जहां एक ईमानदार किसान रामू, फसल खराब होने के कारण मोहन से लिया उधार नहीं चुका पाता। तनाव और तकरार के बीच जब दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगते हैं, तो गांव वाले हस्तक्षेप करते हैं। पंचायत बैठती है, और पूरे गांव की एकता और सहयोग से न सिर्फ रामू का कर्ज चुकता होता है, बल्कि गांव में प्रेम और भाईचारे की मिसाल भी कायम होती है। यह कहानी सिखाती है कि जब समाज एकजुट हो जाए, तो कोई भी समस्या बड़ी नहीं रह जाती।


 अब कहानी विस्तार से

सीन 1: गांव की सुबह और रामू का परिचय

(सुबह का समय, हल्की धूप, पक्षियों की चहचहाहट। गांव के कच्चे रास्ते, बैलगाड़ी, मिट्टी के घर। कैमरा धीरे-धीरे एक छोटे से घर की ओर आता है।)

नैरेटर: 

"यह कहानी है एक ऐसे गांव की, जहां सुख-दुख सब मिलकर बांटे जाते हैं। यहां रहता है रामू — मेहनती, ईमानदार, लेकिन हालात से थका हुआ किसान।"

रामू एक मिट्टी के चाय की कटोरी पकड़े आंगन में बैठा है । उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं।


रामू: "इस साल तो फसल भी अच्छी नहीं हुई है... घर में अनाज नाम का एक भी दाना नहीं बचा है।"

पत्नी: "जाओ जाकर मोहन से फिर उधार मांग लो। बच्चा भूखा सोया तो अच्छा नहीं लगेगा।"

रामू (धीरे से): " उधर पहले ही बहुत हो गया है, वह दोबारा उधार देगा कि नहीं.. लेकिन ठीक है, एक कोशिश और कर लेते हैं।"


सीन 2: मोहन की दुकान

गांव के चौक में बनी मोहन की दुकान। दीवार पर पुराने पोस्टर, बगल में बेंच, खाता-बही खुला पड़ा है।

मोहन (बही देखकर बड़बड़ाता है): "रामू का उधार दो महीने से बढ़ता ही जा रहा है। पैसे देने का नाम ही नहीं ले रहा ... आज दो टूक बात करनी पड़ेगी।"

(दुकान पर बैठे कुछ और ग्रामीण सुन रहे हैं।)

ग्रामीण: "रामू की हालत सच में खराब है मोहन, थोड़ा वक्त और दे दो।"

मोहन (कड़वाहट में): "दिल तो पिघलता है, लेकिन दुकानदारी भी चलानी है। उधारी से घर नहीं चलता।"



सीन 3: रामू का मोहन से सामना

(रामू दुकान पर पहुंचता है। दोनों के बीच हल्की असहजता होती है।)

रामू (नजर झुकाकर): "मोहन भाई... थोड़ा चावल और दाल मिल जाए तो बहुत बड़ी मेहरबानी होगी। फसल खराब हो गई है..."

मोहन (गंभीर स्वर में): "रामू, अब और नहीं। कब तक? मैं भी किसी का उधार नहीं खाता।"

रामू (विनम्र स्वर में): "मैं जानता हूं, पर यकीन मानो... अगली फसल में सब चुका दूंगा।"

मोहन (तेज स्वर में): "बस! वादे सुनते-सुनते थक गया हूं! मैं और उधर नहीं दे सकता ।"



सीन 4: बहस और भीड़

रामू और मोहन की बहस तेज होती है। उन दोनों की बात सुनकर गांव वाले आसपास जमा हो जाते हैं।

मोहन (गुस्से में): "अब राशन नहीं मिलेगा रामू! पहले पुराना उधार चुकाओ!"

रामू (आंखें नम): "अगर मेरे बस में होता तो क्या मैं मांगने आता? मेरे घर में खाने-पीने का एक भी दान नहीं है ।"


एक बुजुर्ग (बीच में आते हैं): "अरे लड़को, क्या हो गया? कुछ शर्म करो, गांव के बीचों-बीच झगड़ रहे हो।"



(भीड़ में कानाफूसी होती है। कुछ लोग रामू के पक्ष में बोलते हैं, कुछ मोहन के।)



सीन 5: गांव की बैठक

(गांव के पीपल के पेड़ के नीचे पंचायत लगती है। सब मिलकर बैठते हैं।)

मुखिया: "रामू और मोहन दोनों हमारे गांव के बेटे हैं। आपस में झगड़ा करने से कुछ नहीं होगा । चलो, बात को सुलझाते हैं।"

रामू और मोहन दोनों अपने-अपने बात मुखिया के सामने रखते है


रामू: "मैं जिम्मेदारी से भाग नहीं रहा हूं। बस हालात ने मजबूर किया है।"

मोहन: "मैं भी दुश्मन नहीं हूं, लेकिन दुकान उधार में नहीं चलती।"

(चारों ओर सन्नाटा। सब सोच में पड़ जाते हैं।)



सीन 6: समाधान की पहल

(एक वृद्ध महिला आगे आती है। उसके हाथ में छोटा सा पोटली है।)

दादी (मुस्कुराकर): "मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन ये पांच रुपये रखो रामू के लिए। इससे उसका कुछ मदद हो जाएगा ।"

(धीरे-धीरे बाकी गांववाले भी मदद करने लगते हैं — कोई अनाज देता है, कोई पैसे।)

एक युवा: "चलो हम सब मिलकर रामू का कर्ज चुकाते हैं।"

(मोहन चुप हो जाता है, उसकी आंखें भर आती हैं।)



सीन 7: मोहन का परिवर्तन

मोहन (धीरे से): "मैंने केवल लेन-देन देखा था, आज पहली बार गांव की आत्मा को महसूस किया है।"

(वह रामू के पास जाकर उसका हाथ पकड़ता है।)

मोहन: "रामू, कोई बात नहीं। जो हुआ, उसे भूल जाओ। आगे से तुम्हारी फिक्र मेरी भी है।"

रामू (आंसू पोछते हुए): "धन्यवाद मोहन भाई... और गांव वालों का भी... आपलोगों ने मेरी इज्जत बचाई।"



सीन 8: गांव में बदलाव

(अब रामू ज्यादा मेहनत करता है, खेत में हरी फसलें लहलहाने लगती हैं।)

नैरेटर: "इस गांव ने सिखाया — जब साथ होते हैं दिल, तो सूखे खेत भी हरियाली बन जाते हैं।"


(बच्चे खेत में दौड़ रहे हैं, रामू अपनी पत्नी के साथ मुस्कुरा रहा है। मोहन दुकान पर बैठा है और रामू को देखकर हाथ हिलाता है।)


नैरेटर: "यह थी रामू और मोहन की कहानी... इंसानियत और एकता की मिसाल।"

यह कहानी मानवीय संवेदना और गांव की आत्मा को दर्शाती है।

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